शादी हर लड़की के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ होती है। वह अपने मायके से ससुराल आती है, नए माहौल में ढलती है और एक नए रिश्ते को संवारने की कोशिश करती है और उसमे ढलती है। इस दौरान उसकी सबसे बड़ी यही इच्छा होती है कि उसे अपने पति के साथ निजी समय ज्यादा से ज्यादा मिले, ताकि दोनों के बीच मजबूत रिश्ता बन सके।
यही वजह है कि आजकल बहुत सी महिलाएं शादी के बाद पति के साथ अकेले रहना पसंद करती हैं। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि संयुक्त परिवार का महत्व कम हो गया है। आइए विस्तार से समझते हैं दोनों पहलुओं को।
महिलाएं अकेले रहना क्यों चाहती हैं?
शादी के शुरुआती दिनों में हर महिला चाहती है कि वह अपने पति के साथ हर पल को जी सके, इंटिमेट हो सके। लेकिन जॉइंट फैमिली में घर के कई सदस्य होने से वह खुलकर अपने रिश्ते को महसूस नहीं कर पाती और ना ही प्राइवेट पलो को ठीक से एन्जॉय कर पाती है। यही कारण है कि महिलाएं अक्सर चाहती हैं कि उन्हें एक ऐसी जगह मिले जहां सिर्फ वे और उनका जीवनसाथी हों। और खुल कर सब कुछ करे।
अपने निर्णय खुद लेने की आज़ादी
आज की महिलाएं पहले की तुलना में ज्यादा आत्मनिर्भर और पढ़ी-लिखी हैं। तो वे चाहती हैं कि घर से जुड़ी छोटी-बड़ी बातों में उन्हें अपनी मर्ज़ी से फैसले लेने की आज़ादी मिले, और उनके फैसले में कोई दखल ना दे। अकेले रहने से उन्हें अपने ढंग से घर को व्यवस्थित करने और जीवन को जीने का अवसर मिलता है।
घर की तकरार और मतभेद से दूरी
संयुक्त परिवार में हर सदस्य की सोच और आदतें अलग होती हैं, जिसकी वजह से आये दिन बवाल होता ही रहता है। कई बार छोटी-छोटी बातों पर बहस या तकरार हो जाती है, कई बार नौबत मारपीट तक पहुंच जाती है। महिलाएं चाहती हैं कि शादी के शुरुआती दिनों में इस तरह के तनाव से बचा जाए, ताकि उनका रिश्ता नकारात्मकता से दूर रहे। और खुल कर अपनी पति के साथ शादी को एन्जॉय करे।
करियर और लाइफस्टाइल का संतुलन
आजकल बहुत सी महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी करती हैं। जॉइंट फैमिली में उनसे उम्मीद की जाती है कि वे पारंपरिक जिम्मेदारियों को भी निभाएं। इससे उनके लिए करियर और घरेलू जिम्मेदारियों के बीच संतुलन मुश्किल हो जाता है। अकेले रहने पर वे दोनों चीजों को अपने तरीके से मैनेज कर सकती हैं।
जॉइंट फैमिली का महत्व क्यों बना हुआ है?
संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा फायदा है भावनात्मक सहारा। जब पति-पत्नी किसी परेशानी से गुजरते हैं, तो परिवार के अनुभवी लोग उन्हें सही रास्ता दिखा सकते हैं। उनके अनुभव से न सिर्फ समस्याओं का हल निकलता है बल्कि रिश्तों की मजबूती भी बनी रहती है।
न्यूक्लियर फैमिली में बच्चे सिर्फ मां-बाप तक सीमित रह जाते हैं। जबकि जॉइंट फैमिली में दादा-दादी और चाचा-चाची बच्चों को न सिर्फ प्यार देते हैं, बल्कि संस्कार और परंपराएं भी सिखाते हैं। बच्चों का व्यक्तित्व अधिक संतुलित और सामाजिक बनता है।
अकेले रहने पर पति-पत्नी पर ही सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं। इससे कई बार तनाव बढ़ जाता है। जॉइंट फैमिली में जिम्मेदारियां बंट जाती हैं, चाहे बच्चों की देखभाल हो, घर का काम हो या आर्थिक दायित्व। इससे बोझ काफी हद तक हल्का हो जाता है।
संयुक्त परिवार में रिश्तों की गर्माहट और अपनापन हमेशा बना रहता है। बीमारी, आर्थिक दिक्कत या किसी भी संकट के समय परिवार ही सबसे बड़ा सहारा बनता है। यही सुरक्षा की भावना जॉइंट फैमिली को खास बनाती है। लेकिन अफसोस की आज की लड़किया संयुक्त परिवार को बोझ समझने लगी है।
संतुलन ही असली समाधान
असल में समस्या यह नहीं है कि महिलाएं अकेले रहना चाहती हैं या जॉइंट फैमिली जरूरी है। असली बात यह है कि रिश्तों में संतुलन कैसे बनाया जाए। पति-पत्नी को अपनी निजी जिंदगी का सम्मान चाहिए, वहीं परिवार के अनुभव और सहयोग का महत्व भी नकारा नहीं जा सकता।
यदि परिवार और नई बहू दोनों एक-दूसरे की सोच को समझें, सीमाएं तय करें और निजी स्पेस का सम्मान करें, तो न सिर्फ रिश्ते मजबूत होंगे बल्कि परिवार का महत्व भी बरकरार रहेगा।
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