शुभम और नेहा की अधूरी मोहब्बत की दिल को झकझोर देने वाली कहानी, जहाँ प्यार, समाज के बंधन, और दुखद अंत एक-दूसरे से टकराते हैं। बारिश की रातों में शुरू हुआ उनका रोमांटिक सफर, जेल की सलाखों और परिवार की धमकियों से गुज़रता हुआ एक बेहद ही दर्दनाक अंत की ओर जाता है। यह कहानी प्यार की गहराई, विश्वासघात, और बलिदान की भावनात्मक यात्रा का उजागर करती है।
आखरी साँस का मोहब्बत
कानपूर शहर की तंग गलियों में बसा था एक छोटा-सा मोहल्ला, जहाँ पुरानी हवेलियाँ और नए मकानों का मेल एक अजीब-सी ही कहानी बयान करता था। बारिश का मौसम था मानसून अपने चरम पर था, और आसमान से रिमझिम फुहारें गिर रही थीं, मानो प्रकृति भी किसी अनकही उदासी को बयाँ कर रही हो। शुभम का घर, मोहल्ले के कोने में, एक पुराना लेकिन मजबूत घर था। उसकी खिड़कियों से बारिश की बूँदें टप-टप टपक रही थी, और भीतर का सन्नाटा बाहर की आवाज़ों को और गहरा कर देता था।
शुभम, 22 साल का एक साधारण-सा नौजवान है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक हल्की-सी मुस्कान रहती थी, आज वो अपने कमरे में अकेला बैठा कुछ सोच रहा था। उसकी आँखें लाल थीं न जाने कितनी रातें उसने जागकर काटी थीं। उसके सामने एक पुरानी तस्वीर तैर रही थी, उसकी और नेहा की। नेहा, जिसकी हँसी कभी उसके दिल की धड़कन और जान थी, आज वही हँसी उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दर्द बन चुकी थी।
दो दिल, दो साल पहले मिले।
बात आज से करीब दो साल पहले की है, शुभम और नेहा की मुलाकात कॉलेज के एक सांस्कृतिक उत्सव में हुई थी। शुभम, जो अपनी शर्मीली मुस्कान और प्यारी बातों के लिए जाना जाता था, वही नेहा की चंचलता और बेफिक्र अंदाज़ के आगे हार मान चुका था। नेहा की आँखों में एक ऐसा प्यारा चमक और आत्मवश्वास, जो शुभम को हर बार एक नई दुनिया की सैर कराती थी। दोनों की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई।
अब कॉलेज के गलियारों में कैंटीन की मेजों पर, और बारिश में भीगते हुए शहर के पार्क में अब उनकी छोटी-छोटी मुलाकातें उनकी दुनिया का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गई थीं। और उनके सच्चे प्यार की गवाही दे रही थी।
एक शाम की बात है जब बारिश ने पुरे कानपूर शहर को भिगो रखा था, नेहा और शुभम एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे खड़े थे। नेहा ने शुभम का हाथ पकड़ा और धीरे से कहा, जानते हो “शुभम, तुम मेरे लिए वो साँस हो, जो मैं हर पल लेती हूँ।” शुभम नेहा की आँखों में देखा और नेहा को अपनी ओर खींचा। उसने नेहा के माथे पर एक हल्का-सा चुम्बन दिया, और दोनों एक दूसरे की बाहों में शमा गये और बारिश में भीगते हुए हँसने लगे। ये एक ऐसा पल था जिसे दुनिया की कोई ताकत उनकी मोहब्बत को नहीं छू सकती थी।
लेकिन वो कहते है ना मोहब्बत की राहें कभी आसान नहीं होतीं। नेहा का परिवार रूढ़िवादी सोच का था, और उनकी नज़रों में शुभम एक साधारण-सा लड़का था, जो उनकी बेटी के बिलकुल लायक नहीं था। नेहा ने कई बार अपने घरवालों से शुभम की बात की, लेकिन हर बार उसे डाँट, धमकियाँ और मार ही मिलीं। एक दिन, बात इतनी बढ़ गई कि नेहा के पिता ने शुभम को अपने घर बुलाया और साफ शब्दों में कहा, “मेरी बेटी से दूर रहो, वरना अंजाम बुरा होने वाला है, जो तुम सोच भी नहीं सकते की क्या हश्र करने वाला हूँ।
शुभम ने नेहा से दूरी बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसका दिल और मन मानने को तैयार ही नहीं था। एक रात, जब नेहा ने उसे सबसे छुपकर मिलने को बुलाया, दोनों मिलते ही एक एक-दूसरे को गले लगाया और एक दूसरे बाहो में जकड़ कर बाते करने लगे। उस रात, बारिश की बूँदों के बीच, उनकी नज़दीकियाँ कुछ ऐसी बढ़ीं कि दोनों ने अपनी सीमाएँ लाँघ दीं और खूब प्यार किया। यह उनके लिए सच्चा प्यार था, लेकिन समाज की नज़रों में यह गुनाह बन गया। एक ऐसा गुनाह जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
अगले दिन, नेहा के परिवार ने शुभम के खिलाफ रेप की FIR दर्ज कर दी। शुभम के लिए यह एक झटका था। वह समझ नहीं पा रहा था कि जिस नेहा ने उससे अपने दिल की बातें साझा की थीं, वही अब उस पर इतना बड़ा इल्ज़ाम कैसे लगा सकती थी। बाद में उसे पता चला कि नेहा के परिवार ने उसे मजबूर किया था। जिसके बाद शुभम को जेल हो गई।
जेल की सलाखों के पीछे की यादें।
जेल की ठंडी दीवारों ने शुभम को बहुत कुछ सिखाया। वहाँ उसने अपने प्यार को बार-बार याद करके तड़प रहा था, वो जेल से बहार आने के लिए तड़प रहा था, उसे नेहा की हँसी, उसकी बातें, और वो बारिश की रात सबकुछ याद आ रहा था। लेकिन साथ ही, उसे नेहा पर गुस्सा भी आता था। उसने सोचा, अगर नेहा ने हिम्मत दिखाई होती, तो शायद आज वह यहाँ न होता। फिर भी, उसके दिल में नेहा के लिए प्यार कम नहीं हुआ।
कई महीनों बाद, जब शुभम जेल से बाहर आया, तो वह बदल चुका था। उसकी मुस्कान अब पहले जैसी नहीं रही उसका चेहरा थका-थका सा लगता था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी नेहा की यादें थीं। उसने सोचा कि वह अब नेहा से कभी नहीं मिलेगा, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
फिर जाग उठी मोहब्बत।
एक दिन, बाज़ार में शुभम की मुलाकात नेहा से हो गई। नेहा की आँखों में शर्मिंदगी थी, और वह शुभम से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। शुभम ने उसे देखा, और उसके दिल में पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गईं। उसने हिम्मत जुटाकर नेहा से बात की। नेहा ने रोते हुए माफी माँगी, “शुभम, मुझे माफ कर दो। मैं मजबूर थी। मेरे परिवार ने मुझे धमकाया था। मैं तुमसे प्यार करती थी, और अब भी करती हूँ।”
शुभम का दिल पिघल गया। उसने नेहा को गले लगाया, और दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे। उस दिन के बाद, दोनों फिर से मिलने लगे, लेकिन इस बार गुपचुप। बारिश की रातों में, जब शहर सो रहा होता था, वे एक-दूसरे से मिलते, अपनी दिल की बाते शेयर करते। नेहा की उंगलियाँ जब शुभम के हाथों में होतीं, तो शुभम को लगता कि उसकी ज़िंदगी फिर से रंगों से भर गई है।
एक रात, जब दोनों एक सुनसान पार्क में बैठे थे, नेहा ने शुभम के कंधे पर सिर रखा और धीरे से कहा, “शुभम, तुम मेरे लिए अब भी वही हो। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती।” शुभम ने उसकी आँखों में देखा, और उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने नेहा के चेहरे को अपने हाथों में लिया और धीरे से उसके माथे पर एक चुम्बन दिया। उस पल दोनों के बीच की नज़दीकियाँ फिर से काफी गहरी हो गईं, लेकिन इस बार दोनों पूरी तरह से सावधान थे। उनकी मोहब्बत अब पहले से ज़्यादा गहरी हो गई थी, लेकिन डर भी उतना ही बड़ा था।
आखिरी धमकी बनी प्यार का अंत।
नेहा के परिवार को उनकी मुलाकातों की फिर से भनक लग गई। एक दिन, नेहा के भाई और पिता शुभम के घर आए। उन्होंने शुभम को धमकाया और उसके साथ मारपीट भी किया, और उन्होंने कहा “अगर तूने फिर से नेहा से मिलने की कोशिश की, तो इस बार तुझे जेल से बाहर नहीं आने देंगे, पूरा जीवन जेल में ही सड़ा देंगे।” शुभम ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके दिल में एक तूफान उठ रहा था। उस रात, वह अपने कमरे में बैठा, नेहा की तस्वीर को देखता रहा। उसकी आँखों से लगातर आँसू बह रहे थे।
उसने सोचा, “मैं नेहा से प्यार करता हूँ, लेकिन क्या यह प्यार मेरी ज़िंदगी का अंत बन जाएगा?” उसे लग रहा था कि वह एक ऐसी जंग लड़ रहा है, जिसमें उसकी हार एकदम तय है। नेहा को खोने का डर, समाज की नज़रें, और जेल की यातनाये उसे अंदर ही अंदर तोड़ रही थीं।
मरते दम तक का प्यार।
उस रात, बारिश और तेज़ हो गई थी। शुभम ने अपने कमरे की खिड़की खोली और बाहर देखा। बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर गिर रही थीं, लेकिन वह सुन्न था। उसने एक छोटी-सी शीशी निकाली, जिसमें ज़हर भरा था। उसने नेहा की तस्वीर को एक बार फिर देखा और धीरे से कहा, “नेहा, शायद इस बार मैं तुम्हें आज़ाद कर दूँ।”
उसने ज़हर पी लिया। कुछ पल बाद, उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा। उसकी आँखों के सामने नेहा की हँसी, बारिश की वो रातें, और उनकी अधूरी मोहब्बत की कहानी घूम रही थी। उसकी आखिरी साँस के साथ, बारिश की आवाज़ भी थम गई, मानो प्रकृति भी उसके दर्द को महसूस कर रही हो।
मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी।
नेहा को जब शुभम की मौत की खबर मिली, वह पूरी तरह से टूट गई। वह उस बरगद के पेड़ के नीचे गई, जहाँ उनकी मोहब्बत की शुरुआत हुई थी। बारिश फिर से शुरू हो गई थी। उसने शुभम की तस्वीर को अपने सीने से लगाया और रोते हुए कहा, “शुभम, मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगी।”
शुभम की कहानी खत्म हो गई, लेकिन उसकी मोहब्बत नेहा के दिल में हमेशा ज़िंदा रही। बारिश की हर बूँद में, उस बरगद के पेड़ की हर पत्ती में, और उस शहर की हर गली में, उनकी अधूरी मोहब्बत की गूँज हमेशा के लिए शांत हो गई।
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