Romantic Hindi Story: शाम का समय है। दिल्ली की इस हाई-राइज़ सोसाइटी में हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही है। नेहा अपनी बालकनी में खड़ी है और हाथ में कॉफी का मग लिए नीचे पार्क में खेलते बच्चों को देख रही होती हैं। उसका पति विवेक अभी-अभी जिम से लौटकर आया है। उसकी टी-शर्ट पसीने से भीगी हुई हैं। लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी ताजगी है। नेहा, जरा नींबू पानी तो बना दो, आज जिम में कुछ ज्यादा ही मेहनत हो गई,” विवेक हंसते हुए कहता है अपनी टी-शर्ट से माथे का पसीना पोंछते हुए।
हां, अभी लाई,” नेहा जवाब देती है और रसोई की ओर बढ़ जाती है। लेकिन मन ही मन वह गौर कर रही होती है कि पिछले कुछ हफ्तों से विवेक जिम में ज्यादा समय बिता रहा है। पहले तो वह एक घंटे में लौट आता था लेकिन अब ढाई-तीन घंटे लगाने लगा है। “क्या बात है, आजकल जिम में इतना समय क्यों लग रहा है ?” नेहा मन ही मन सोचती है लेकिन कुछ पूछती नहीं हैं।
सुबह की मुलाकातें
अगली सुबह विवेक अपनी सात साल की बेटी तारा को स्कूल बस तक छोड़ने जाता है। नेहा बालकनी से देखती है। बस स्टॉप पर विवेक अपने कॉलेज के दोस्त रोहन की पत्नी माया से बातें कर रहा है। माया भी अपने बेटे को बस में बिठाने आई है। दोनों हंसते-बोलते हुए कुछ ज्यादा ही सहज लग रहे थे। माया की हंसी की आवाज़ हवा में तैरती हुई नेहा की कानो तक पहुंचती है। ये देखकर नेहा का मूड थोड़ा खराब हो जाता है, लेकिन वह खुद को समझाती है, “शायद मैं ज्यादा सोच रही हूं।”
शाम को डिनर के समय नेहा हल्के से पूछती है, “आज बस स्टॉप पर माया से क्या बातें हो रही थीं? कुछ खास?”
अरे, कुछ खास नहीं विवेक बेपरवाह अंदाज़ में जवाब देता है। बस, वो जिम की बातें कर रही थी। कह रही थी कि उसने नया ट्रेनर लिया है। गजब की फिटनेस है उसकी। उम्र का अंदाज़ा ही नहीं लगता। विवेक के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर जाती है।
नेहा के मन में कुछ खटकता है। हां, फिटनेस तो दिखती है, वह तटस्थ स्वर में कहती है और बात बदल देती है। लेकिन उसका मन बेचैन है।
प्यार की धीमी शुरुआत
कुछ दिन बाद सोसाइटी में गणेश चतुर्थी का उत्सव हो रहा होता है। रंग-बिरंगे पंडाल मिठाइयों की खुशबू, और बच्चों की हंसी से माहौल जीवंत हो रखा है। माया ने एक पीले रंग की साड़ी पहनी है, जो उसकी सादगी को और निखार रही है। उसकी आंखों में एक चमक है, जो हर किसी का ध्यान खींच रही है। विवेक उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराता है।
नेहा जो अपनी सहेलियों के साथ खड़ी है यह सब नोटिस करती है। ये माया भी न, हर बार इतना बन-ठनकर आती है, वह अपनी सहेली रिया से कहती है।
अरे छोड़ न, कुछ लोग बस दिखावे के लिए जीते हैं, रिया हंसते हुए जवाब देती है। लेकिन नेहा का मन फिर भी नहीं मानता। उसे विवेक की वो मुस्कान खटक रही होती है।
पार्टी के दौरान विवेक और माया एक कोने में खड़े होकर बातें करने लगते हैं। माया हंसते हुए कहती है, विवेक, तुम्हारी तारा तो बहुत स्मार्ट है। आज स्कूल में उसने अपने प्रोजेक्ट की तारीफ सुनी।
हां, वो तो मेरी शेरनी है, विवेक थोड़ा गर्व से कहता है। वैसे, तुम्हारा बेटा भी तो म्यूज़िक में बहुत अच्छा है ऐसा सुना है?”
हां, थोड़ा-बहुत सीख रहा है, माया शरमाते हुए जवाब देती है। उनकी बातें इतनी सहज हैं कि समय का पता ही नहीं चलता।
नेहा दूर से ही यह सब देख रही है। उसका मन कह रहा है कि कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन वह खुद को तसल्ली देती है, शायद मैं बेवजह शक कर रही हूं।
मन की उलझन किस से कहे।
कुछ हफ्ते बीतते हैं। विवेक और माया की मुलाकातें अब नियमित हो गई हैं। कभी बस स्टॉप पर कभी जिम में तो कभी सोसाइटी के पार्क में। माया की हंसी और उसकी बेफिक्र बातें विवेक को एक नई ताजगी देती हैं। वह खुद को पहले से ज्यादा ऊर्जावान महसूस करता है।
एक दिन जिम में माया और विवेक ट्रेडमिल पर पास-पास दौड़ रहे हैं। माया हल्के से हांफते हुए कहती है, विवेक तुम तो रुकते ही नहीं। आखिर इतनी एनर्जी कहां से लाते हो?
विवेक हंसते हुए जवाब देता है, बस, तुम जैसी फिट लोग आसपास हों, तो एनर्जी अपने आप आ जाती है। और हंसने लगता हैं।
माया हल्का सा शरमा जाती है, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब चमक है। वह जवाब देती है, अच्छा जी अब चापलूसी भी करने लगे?
दोनों हंस पड़ते हैं। जिम में मौजूद कुछ लोग उनकी तरफ देखते हैं, लेकिन दोनों को इसकी परवाह नहीं करते हैं।
नेहा को यह सब धीरे-धीरे खटकने लगता है। एक शाम जब विवेक जिम से देर से लौटता है नेहा पूछती है, आज फिर माया से मुलाकात हुई?
विवेक थोड़ा चौंकता है, लेकिन हल्के से जवाब देता है, हां, वो जिम में थी। बस, थोड़ी बात हुई।
नेहा चुप रहती है, लेकिन उसका मन बेचैन है। उसे लगता है कि विवेक की बातों में अब पहले जैसी गर्मजोशी नहीं।
जब नज़दीकियां बढ़ती हैं
एक दिन, स्कूल बस जल्दी आ जाती है और तारा के साथ-साथ माया का बेटा भी बस छूट जाता है। विवेक कहता है, “माया, मैं दोनों बच्चों को कार से स्कूल ड्रॉप कर देता हूं।”
“अरे, तुम्हें तकलीफ होगी,” माया हिचकिचाते हुए कहती है।
“कोई तकलीफ नहीं। चलो, बच्चों को तैयार करो,” विवेक मुस्कुराते हुए कहता है।
माया का बेटा नए अंकल के साथ जाने को तैयार नहीं होता, तो माया भी कार में पीछे की सीट पर बैठ जाती है। “माया, सामने आ जाओ, पीछे क्यों बैठी हो?” विवेक हल्के से कहता है।
“नहीं, मैं यहीं ठीक हूं,” माया जवाब देती है, लेकिन फिर वह सामने की सीट पर आ जाती है। रास्ते में दोनों बच्चों की बातें करते हैं, हंसते हैं, और माहौल हल्का-फुल्का हो जाता है।
यह सब नेहा की सहेली रिया देख लेती है और नेहा को बता देती है। नेहा का गुस्सा अब हद पार कर रहा है। अगले दिन, वह खुद तारा को बस स्टॉप पर छोड़ने जाती है। माया को देखकर वह तंज कसती है, “कुछ लोग तो बस दूसरों के पतियों से बात करने का मौका ढूंढते हैं।”
माया चुप रहती है। वह अपने बेटे को बस में बिठाकर चुपचाप चली जाती है।
मन का टकराव तो होना ही था।
माया को विवेक से बात करना अच्छा लगता है। रोहन एक अच्छे पति हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में कोई उत्साह नहीं। वह हमेशा अपने काम में व्यस्त रहते हैं। दूसरी तरफ विवेक की हंसी उसका बिंदास अंदाज़ और उसकी बातें माया को एक नई ज़िंदगी का अहसास दिलाता हैं।
एक दिन की बात है, विवेक माया को कॉफी शॉप में मिलने बुलाता है। माया हल्का मेकअप की हुई है, अपनी पसंदीदा हरी ड्रेस पहनती है, और कॉफी शॉप पहुंचती है। वहां दोनों एक-दूसरे की आंखों में देखकर बातें करते हैं। विवेक कहता है, माया, तुम्हारी स्माइल में कुछ तो बात है। इसे देखकर मेरा दिन बन जाता है।
माया शरमाते हुए जवाब देती है, बस, अब ज्यादा तारीफ मत करो। मैं तो साधारण सी ही हूं। तुम्हें पता नहीं क्यों मैं स्पेसल लगती हू।
अच्छा साधारण और तुम? तुम तो इस सोसाइटी की शान हो, विवेक हंसते हुए कहता है।
तभी नेहा की सहेली वहां पहुंचती है और दोनों को देखकर तंज कसती है, अरे, आप दोनों यहां? मज़े करो!
माया और विवेक जल्दी से कॉफी खत्म करते हैं और अपने-अपने घर लौट जाते हैं।
दूरियां और चाहत
अगले दिन, माया अपने बेटे को बस स्टॉप पर भेजने के लिए रोहन को कहती है। वह जानती है कि नेहा अब उसे ताने मारेगी। जब रोहन लौटता है, तो वह गुस्से में है। नेहा ने सबके सामने तुम्हारी बुराई की। कह रही थी कि तुम विवेक के पीछे पड़ी हो।
माया की आंखें भर आती हैं। वह बाथरूम में जाकर चुपके से रोती है। एक तरफ उसका परिवार है, दूसरी तरफ विवेक के लिए उसकी बढ़ती चाहत। आखिर वो करे तो क्या करे?
रोहन फैसला करता है कि वे इस सोसाइटी को छोड़कर कहीं और शिफ्ट हो जाएंगे। माया का दिल टूटता है, लेकिन वह चुप रहती है। कुछ हफ्तों बाद, वे एक नए अपार्टमेंट में शिफ्ट हो जाते हैं।
माया को विवेक की यादें रह रह कर सताती हैं। उसकी हंसी, उसकी बातें और वो कॉफी शॉप के पल। वह कोशिश करती है कि विवेक को भूल जाए, लेकिन दिल पर भला किसका जोर है? वह मन ही मन सोचती है, प्यार तो बस हो जाता है। लेकिन क्या यह प्यार था, या सिर्फ एक भटकाव?
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