लखनऊ की हल्की ठंडी हवाओं में, नवाबी शहर की तंग गलियों में, एक प्यार की कहानी पनप रही थी। अर्जुन और राधिका, दो ऐसे दिल जो बचपन से एक-दूसरे के साथ हंसी-मजाक, सपनों और छोटी-छोटी बातों में बंधे थे। दोनों एक ही मोहल्ले में पले-बढ़े, एक ही स्कूल में पढ़े और अब लखनऊ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक कर रहे थे।
अर्जुन, एक साधारण ब्राह्मण परिवार से था। उसका घर धार्मिक माहौल में डूबा था। मां-पापा पूरी तरह से पंडिताई को जीते थे, लेकिन अर्जुन को हमेशा पढ़ाई और नौकरी की बातें करते थे। दूसरी तरफ, राधिका का परिवार खुला और आजाद ख्यालों वाला था। उनके घर में प्याज-लहसुन से लेकर अंडा-मुर्गा सब चलता था। दोनों परिवारों के बीच दोस्ती थी, लेकिन अर्जुन और राधिका का रिश्ता दोस्ती से कहीं आगे निकल चुका था।
एक फोन कॉल ने किया दिल बेचैन।
“हैलो… अर्जुन, मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है,” राधिका की आवाज फोन पर कांप रही थी।
“क्या हुआ, राधिका? सब ठीक है न?” अर्जुन का दिल धक-धक करने लगा।
“प्लीज, जल्दी मेरे कमरे पर आ जाओ,” राधिका ने घबराते हुए कहा और फोन कट गया।
अर्जुन ने बिना देर किए अपनी पुरानी मोटरसाइकिल निकाली और राधिका के किराए के कमरे की ओर दौड़ पड़ा। दोनों के कमरे अलग-अलग कॉलोनियों में थे, लेकिन मोटरसाइकिल से सिर्फ 15 मिनट की दूरी थी। फिर भी, उस प Yılmaz 15 मिनट अर्जुन को सालों जैसे लग रहे थे। मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे। राधिका इतनी परेशान क्यों है? कहीं कोई बड़ी मुसीबत तो नहीं?
राधिका अर्जुन की जिंदगी का वो हिस्सा थी, जिसके बिना वो अधूरा था। बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, ये दोनों को भी नहीं पता था। बस, एक-दूसरे के बिना जीना नामुमकिन सा लगता था।
राधिका की परेशानी और अर्जुन का प्यार भरा सहारा
जैसे ही अर्जुन राधिका के कमरे में पहुंचा, राधिका उससे लिपट गई। उसकी सिसकियां कमरे की खामोशी को तोड़ रही थीं। अर्जुन ने बिना कुछ पूछे, उसे गले लगाया और उसके सिर पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगा। उसे पता था कि राधिका को शांत होने में वक्त लगता है। छोटी-छोटी बातों पर वो घबरा जाती थी, और ऐसे में उसे अर्जुन की जरूरत होती थी।
बचपन में जब राधिका डरती थी, तो अपनी मां के आंचल में छुप जाया करती थी। अब मां की जगह अर्जुन की चौड़ी छाती थी, जहां उसे सुकून मिलता था।
थोड़ी देर बाद, जब राधिका की सांसें सामान्य हुईं तो , अर्जुन ने उसे कुर्सी पर बिठाया। “बताओ, क्या हुआ? इतनी परेशान क्यों हो?” उसने प्यार से पूछा।
राधिका ने गहरी सांस ली और बोली, “अर्जुन, सामने वाले अपार्टमेंट में आज सुबह एक लड़के-लड़की ने खुदकुशी कर ली। दोनों अलग-अलग जाति के थे। लड़की 18 की थी, लड़का 20 का। अभी तो उनकी जिंदगी शुरू भी नहीं हुई थी!” उसकी आंखें फिर नम हो गईं।
अर्जुन ने धीरे से कहा, “ओह… ये तो दुखद है।”
“अर्जुन, मुझे डर लग रहा है। तुम ब्राह्मण हो, मैं यादव। तुम्हारे घर में प्याज-लहसुन तक नहीं खाया जाता, और मेरे घर में सब कुछ चलता है। क्या तुम्हारी मां मुझे कभी बहू के रूप में स्वीकार करेंगी?” राधिका ने एक सांस में सब कह डाला।
प्यार और समाज का डर
राधिका की बात सुनकर अर्जुन खामोश हो गया। उसकी बात में दम था। समाज की रूढ़ियां, जात-पात का बंधन और मिडिल क्लास की सोच आसानी से बदलती नहीं। अर्जुन की मां पंडिताई को पुरे गर्व से जीती थीं। पिताजी जनेऊधारी थे और कथा-कीर्तन में रमे रहते थे। लेकिन राधिका के परिवार से उनके रिश्ते हमेशा अच्छे रहे। दोनों परिवारों में खाना-पीना, आना-जाना लगा रहता था। यही वजह थी कि अर्जुन और राधिका का प्यार इतना गहरा हो गया था।
“राधिका, तुम ऐसी बातें क्यों सोच रही हो? मेरी मां को तुम कितना पसंद हो, ये तुम भी जानती हो,” अर्जुन ने उसे समझाने की कोशिश की।
“पड़ोसी की बेटी को पसंद करना और बात है, अर्जुन। लेकिन दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाना? ये इतना आसान नहीं,” राधिका ने जवाब दिया।
अर्जुन ने गहरी सांस ली। वो जानता था कि राधिका का डर बेवजह नहीं था। “देखो, राधिका, हमारा प्यार कमजोर नहीं है। हम उन बच्चों की तरह नहीं हैं, जो नासमझी में कोई गलत कदम उठा लेते हैं। हम पहले अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे, नौकरी करेंगे, और फिर अपने परिवार को मनाएंगे।”
चाय की चुस्कियों में प्यार भरा सुकून
राधिका अभी भी शांत नहीं थी। अर्जुन ने रसोई की ओर कदम बढ़ाए और चाय बनाने लगा। ये उनकी पुरानी आदत थी। जब भी राधिका परेशान होती, अर्जुन चाय बनाता और दोनों चाय की चुस्कियों में बातें करते। धीरे-धीरे राधिका की परेशानी कम हो जाती थी।
चाय का कप थमाते हुए अर्जुन ने कहा, “राधिका, मेरी मां का दिल बड़ा है। वो चाहती हैं कि मैं पढ़-लिखकर अच्छी जिंदगी जिऊं। वो कोई सपना पहले से नहीं बुनतीं। उनका मानना है कि समय के साथ सब बदलता है। मैं उन्हें समझाऊंगा।”
“अगर वो नहीं मानीं तो?” राधिका ने चाय का घूंट लेते हुए पूछा। उसकी आंखें अर्जुन के चेहरे पर टिकी थीं।
“अगर वो नहीं मानीं, तो भी हम टूटेंगे नहीं। हमारा प्यार सिर्फ शादी तक सीमित नहीं है। हम दोस्त बनकर, एक-दूसरे का साथ निभाते रहेंगे। लेकिन तुम वादा करो कि तुम कोई गलत कदम नहीं उठाओगी,” अर्जुन ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।

विश्वास की नींव पर प्यार के वादे।
राधिका ने अर्जुन का हाथ कसकर पकड़ा। “हम टूटेंगे नहीं, अर्जुन। न ही कोई गलत कदम उठाएंगे। मैं इंतजार करूंगी—तुम्हारा, समय का, और हमारे प्यार का।”
अर्जुन मुस्कुराया। “हमारे सपने सच होंगे, राधिका। बस थोड़ा वक्त दो। ईमानदारी से देखे गए सपने कभी खाली नहीं जाते।”
चाय का कप अब खाली हो चुका था। राधिका की आंखों में डर की जगह अब एक नई चमक थी। अर्जुन ने चाय का आखिरी घूंट लिया और हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “चाय को शरबत बनाओगे क्या?”
राधिका हंस पड़ी। उसकी हंसी कमरे में गूंज उठी, और अर्जुन को यकीन हो गया कि उसकी राधिका अब ठीक है।
निष्कर्ष
अर्जुन और राधिका की कहानी सिर्फ दो दिलों की नहीं, बल्कि विश्वास और धैर्य की भी कहानी है। समाज की रूढ़ियां और बंधन उनके प्यार को चुनौती जरूर दे सकते हैं, लेकिन उनका विश्वास और एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव ही उनकी असली ताकत है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार वक्त, मेहनत और समझदारी के साथ हर मुश्किल को बड़े आसानी से पार कर सकता है।
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