Hindi Story: मध्यमवर्गीय मोहल्ले में बसी एक छोटी-सी दुनिया थी अनीता और रमेश की। उनका घर, बाहर से देखने में साधारण सा दिखता था, लेकिन भीतर एक ऐसी कहानी बुन रही थी, जो समाज के बनाए नियमों और अपेक्षाओं के बीच अपनी जगह तलाश रही थी। अनीता, एक साधारण गृहिणी थी , जिसके चेहरे पर हमेशा एक हल्की-सी मुस्कान बनी रहती थी, और रमेश, एक मेहनती सरकारी कर्मचारी, जो अपने परिवार की खुशी के लिए दिन-रात मेहनत करते थे। लेकिन आज उस घर में काफी तनाव का माहौल था।
बेटी ने समाज में नाक कटवा दी।
शाम का वक्त था। अनीता रसोई में रमेश के लिए गरमा-गरम चाय बना रही थी। तभी रमेश तेज कदमों से घर में दाखिल हुए। उनके चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था। अनीता ने चाय का प्याला टेबल पर रखते हुए पूछा, “क्या हुआ जी? आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं?”
रमेश ने गहरी सांस ली और गुस्से में बोल पड़े, “परेशान तो होना ही है, अनीता! तुम्हें कुछ पता भी है कि तुम्हारी बेटी ने क्या किया? आज पड़ोस की शादी में सारी कॉलोनी के सामने नाच रही थी। नाच रही थी, अनीता! क्या यही सिखाया था तुमने अपनी बेटी को? अभी मेरी बहन रीता का फोन आया था। वो वहां थीं, और उन्हें इतनी शर्मिंदगी उठानी पड़ी कि क्या बताऊं तुम्हें!”
अनीता ने हैरानी से रमेश की ओर देखा और शांत स्वर में बोली, “अच्छा, तो ये बात है? लेकिन इसमें इतना गुस्सा होने वाली क्या बात है, जी? रिया अपनी दोस्त की शादी में गई थी। आजकल तो शादियों में नाचना-गाना आम बात है। वो भी अपने पति के साथ थी। फिर क्या दिक्कत है?”
रमेश ने और जोर से अपनी आवाज उठाई, “क्या दिक्कत है? अरे, हमारे परिवार की इज्जत का सवाल है! रीता ने बताया कि रिया जिस तरह नाच रही थी, लोग हंस रहे थे। मेरे अपने रिश्तेदार वहां थे। वो क्या सोचेंगे? हमारी बेटी ऐसी हरकत करेगी और हम चुप बैठे रहेंगे?”
अनीता ने चाय का खाली प्याला उठाते हुए कहा, “कोई कुछ नहीं सोचेगा, जी। आजकल किसके पास इतना समय है कि वो दूसरों की बेटियों पर नजर रखे? और फिर, रीता जीजी के अपने बच्चे भी तो शादियों में खूब नाचते हैं। तब तो उन्हें कोई शर्मिंदगी नहीं होती? रिया को नाचने का शौक है। वो अपनी जिंदगी जी रही है। इसमें गलत क्या है?”
रमेश ने तल्खी से जवाब दिया, “शौक? तो क्या मैं अपनी बेटी के शौक के पीछे अपनी इज्जत दांव पर लगा दूं? रीता ने साफ कहा कि उन्हें बहुत बुरा लगा। और तुम? तुम तो खुद शादियों में जाती थीं। क्या तुमने कभी ऐसी हरकत की?”
अनीता ने एक पल के लिए रमेश की ओर देखा। उनकी आंखों में एक पुराना दर्द झलक रहा था। “मेरे शौक?” उन्होंने धीमे से कहा, “आपने मेरे शौक के बारे में कभी पूछा ही नहीं, जी। क्या आपको पता है कि मुझे क्या पसंद था? आपने तो मेरे सारे शौक इस डर में दबा दिए कि कहीं आपके रिश्तेदारों को बुरा न लग जाए। मैंने आपके लिए, आपके परिवार के लिए अपनी हर ख्वाहिश को मार दिया। लेकिन रिया? वो मेरी बेटी है। मैं नहीं चाहती कि वो अपनी खुशियां मेरे जैसे छोड़ दे। उसका पति उसका साथ देता है, उसके शौक पूरे करता है। और इसमें किसी को दखल देने का हक नहीं।”
पुरानी बंदिशे।
रमेश के पास कोई जवाब नहीं था। अनीता की बातें उनके दिल को चुभ रही थीं। वो चुपचाप सोफे पर बैठ गए, जबकि अनीता रसोई में वापस चली गईं। रमेश के मन में एक तूफान सा उठ रहा था। क्या वो सचमुच अनीता को कभी समझ पाए थे? शादी के इतने सालों में क्या उन्होंने कभी उसकी छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखा था?
अनीता जब इस घर में नई-नवेली दुल्हन बनकर आई थी, तो कितनी चुलबुली और हंसमुख थी। उसे छोटी-छोटी चीजों में खुशी मिलती थी। उसे नाचने का शौक था, खासकर लोकगीतों पर। और दूसरा शौक था किताबें पढ़ने का। वो घंटों अपनी छोटी-सी डायरी में कविताएं लिखती और पुरानी किताबों के पन्नों में खो जाती। लेकिन ये शौक ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए।
शादी के कुछ महीनों बाद की बात थी। अनीता अपने कमरे में बैठकर एक पुराना गाना गुनगुनाते हुए अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी। तभी रमेश की मां, सासू मां, कमरे में आईं और तल्ख लहजे में बोलीं, “ये क्या हरकत है, अनीता? हमारे घर में ये गाना-वाना नहीं चलता। भले घर की बहुएं ऐसा नहीं करतीं।”
अनीता ने मासूमियत से जवाब दिया, “मां जी, मैं तो बस एक गाना गुनगुना रही थी। इसमें क्या गलत है?”
“सब गलत है!” सासू मां ने डांटते हुए कहा, “तुझे घर के कामों पर ध्यान देना चाहिए, न कि इन फालतू चीजों पर।” उस दिन के बाद अनीता ने कभी घर में गाना नहीं गाया।
ऐसा ही एक वाकया तब हुआ जब अनीता और रमेश एक रिश्तेदार की शादी में गए थे। वहां एक स्टॉल पर किताबें बिक रही थीं। अनीता का मन एक पुरानी कविता की किताब पर अटक गया। उसने रमेश से कहा, “जी, क्या मैं ये किताब ले लूं? बहुत सस्ती है।”
रमेश ने हंसते हुए कहा, “अरे, किताबें पढ़ने का समय कहां है तुम्हारे पास? घर के कामों में ही तो व्यस्त रहती हो।” लेकिन अनीता ने हिम्मत करके किताब खरीद ली। घर लौटते ही सासू मां ने ताना मारा, “किताबें पढ़ने का शौक चढ़ा है? पहले घर का काम तो ठीक से कर लिया कर।” उस दिन के बाद अनीता ने कभी किताब खरीदने की जिद नहीं की। धीरे-धीरे उसका वो शौक भी कहीं खो गया।
वक्त बीता, और अनीता एक मशीन की तरह घर के कामों में जुट गई। उसकी मुस्कान अब सिर्फ बच्चों के लिए थी। रिया, उसकी बेटी, बचपन से ही नाचने की शौकीन थी। अनीता को उसमें अपनी झलक दिखती थी। लेकिन वो नहीं चाहती थी कि रिया के शौक भी उसी तरह दब जाएं, जैसे उसके अपने शौक दब गए थे।
उसी शाम रमेश की बहन रीता अपने पति के साथ उनके घर पहुंची। आते ही उसने तंज कसते हुए कहा, “भाई, ये क्या हो रहा है तुम्हारे घर में? तुम्हारी बेटी को थोड़ा काबू में रखो। शादी में जिस तरह नाच रही थी, सारे मोहल्ले की नजर उस पर थी।”
अनीता, जो पास में खड़ी थी, ने तुरंत जवाब दिया, “जीजी, आप मेरी बेटी को देखने की बजाय अपनी बेटी पर ध्यान दीजिए। रिया को मैं और उसका पति संभाल लेंगे।”
रीता हैरान रह गई। उसने रमेश की ओर देखा, लेकिन इस बार रमेश चुप रहा। उसे एहसास हो रहा था कि अनीता की बातों में सच्चाई थी। रीता ने कुछ और कहने की कोशिश की, लेकिन अनीता की दृढ़ता के सामने उसकी एक न चली।
रीता और उसका पति जल्दी ही चले गए। घर में सन्नाटा छा गया। रमेश अब भी सोफे पर बैठे थे, अपने विचारों में खोए हुए। अनीता रसोई में रात के खाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी। शायद आज पहली बार उसने अपने दिल की बात खुलकर कही थी।
उधर, रिया अपने पति के साथ शादी से लौटी। उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था। अनीता ने उसे गले लगाया और धीमे से कहा, “बेटी, तू हमेशा ऐसे ही अपनी खुशियां जीना। कोई कुछ भी कहे, अपने शौक को कभी मत छोड़ना।”
रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “मम्मी, आपको भी अपने शौक फिर से शुरू करने चाहिए। मैं आपके लिए एक डायरी और किताब लाऊंगी। और हां, अगली बार हम दोनों मिलकर नाचेंगे!”
अनीता की आंखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान। शायद आज उसे अपनी खोई हुई आवाज वापस मिल गई थी। और उसने ठान लिया था कि अब वो न सिर्फ अपनी बेटी के शौक को उड़ान देगी, बल्कि अपने सपनों को भी फिर से जिएगी।
समाप्त
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Beautiful story 💕
सुंदर कहानी है ❤
Nice❤